सरगुजा. “सत्य की लड़ाई: सरगुजा की धरती पर न्याय की पुकार”एक सत्य और मार्मिक कहानी : जमीन दलाल कैसे अनपढ़ सुखनराम को सरकारी योजना का झांसा देकर जमीन रजिस्ट्री करा लिया.सरगुजा जिले की घनी हरियाली और सीधी-सादी जनजीवन के बीच, एक अनदेखी लड़ाई चल रही है—सच और झूठ के बीच, ईमानदारी और लालच के बीच.।
दरअसल सरगुजा जिले के वर्तमान कलेक्टर विलास भोसकर को जब यह ज्ञात हुआ कि उनके जिले में भू-माफिया और जमीन दलालों का नेटवर्क भोले-भाले ग्रामीणों को निशाना बना रहा है, तो उन्होंने सख्त रुख अपनाया, ऐसे अनेक गिरोह पर एफआईआर दर्ज भी कराई गई, जांच शुरू हुई और कई जगहों पर दबिश भी दी गई, कई गिरफ्त में भी आए, लेकिन यह खेल खत्म नहीं हुआ था.
इस बार यह मामला धौरपुर तहसील के ग्राम नागम का है, यहां रहने वाला सुखन राम नगेसिया एक साधारण किसान हैं. पढ़ा-लिखा नहीं हैं, और उम्र ने उसकी सुनने की शक्ति भी कमजोर कर दी हैं. वह अपनी जमीन से प्यार करता हैं, जिसे उसने अपने पूर्वजों से विरासत में पाया है, लेकिन एक दिन,उसका विश्वास झकझोर दिया गया.
10 मार्च की सुबह, दो अनजान लोग ग्राम नागम पहुँचे,उन्होंने खुद को सरकारी मददगार बताते हुए कहा, “हम तुम्हारा आयुष्मान कार्ड बनवा देंगे. बस आधार कार्ड और जमीन का कागज साथ ले आओ,” सुखन राम ने सोचा, “सरकार मदद कर रही है,तो क्यों न चलूँ ?” वो गाड़ी में बैठकर अंबिकापुर आ गया.
लेकिन वहां, एक खेल खेला गया. उप-पंजीयन कार्यालय में, बिना कुछ समझाए,उससे एक दस्तावेज़ पर अंगूठा लगवाया गया, यह दस्तावेज़ था—रजिस्टर्ड बिक्री अनुबंध, जिसमें लिखा था कि वह अपनी जमीन लगभग दो लाख रुपये में बेच चुका है.
वह लौट आया, कुछ नहीं जान पाया.
लेकिन एक दिन, जब उसने देखा कि कुछ अनजान लोग उसकी जमीन पर हल चला रहे हैं, तब उसे कुछ अजीब लगा, विरोध किया, तो दलालों ने एक मोटा कागज दिखाया—”देखिए, आप तो जमीन बेच चुके हैं.” उस कागज पर उसका ही अंगूठा लगा था और दावा किया गया कि उसे पैसे भी दिए गए हैं. यह बात सुन,सुखन राम का मन टूट गया,उसे कुछ समझ नहीं आया, पर उसके भीतर न्याय की एक चिंगारी थी.
वह सबसे पहले उप-पंजीयन कार्यालय पहुँचा और रजिस्ट्री को रोकने की अपील की, फिर जन दर्शन में खुद कलेक्टर विलास भोसकर के पास गया और अपनी आपबीती सुनाई. उसने बताया कि उसने कभी कोई जमीन नहीं बेची, उसे कोई पैसा नहीं मिला और वह ठगा गया है. कलेक्टर ने उसे ध्यान से सुना और जांच का आश्वाशन दिया.
प्रभारी उप-पंजीयक नायक तहसीलदार निखिल श्रीवास्तव ने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहे, शिकायत दर्ज हो चुकी है, लेकिन दस्तावेज़ पर अंगूठा लगा होने के कारण कानूनी प्रक्रिया जटिल हो गई है, उन्होंने यह भी साफ किया कि भू-स्वामी की उपस्थिति के बिना रजिस्ट्री नहीं हो सकती,
प्रभारी उप पंजीयक की भूमिका भी संदिग्ध…
लेकिन क्या साहब ने कार्यालय में सुखन राम को क्यों नहीं पूछे की आप जमीन बेच रहे हो या नहीं..रजिस्ट्री के समय प्रभारी उप पंजीयक द्वारा सभी से तिक्खार कर पूछा जाता है की,जमीन बेच रहे हो या नहीं..? और क्यों बेच रहे हो..? पैसे मिले या नहीं..? लेकिन साहब की सेटिंग रही होगी शायद,तभी तो अनपढ़ अंगूठा छाप सूखन राम को कुछ पता ही नही चला की उसके साथ क्या हो रहा है.
अब यह मामला केवल एक जमीन का नहीं रहा, यह लड़ाई बन चुकी थी एक अनपढ़ किसान की न्याय के लिए पुकार, एक प्रशासनिक अधिकारी की ईमानदारी की परीक्षा..? और सिस्टम की जवाबदेही की मांग.
सरगुजा की इस लड़ाई में अब सवाल सिर्फ यह नहीं है कि कौन सही है और कौन गलत—बल्कि यह भी है कि क्या एक गरीब, अनपढ़ नागरिक आज भी अपने देश में न्याय पा सकता है..?
सुखन राम लड़ रहा है.
उप पंजीयक जूझ रहे हैं.
और सरगुजा देख रहा है—क्या सच में कानून सबके लिए बराबर है..?