अंबिकापुर। छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। तरूनीर संस्था द्वारा अंबिकापुर के सत्तीपारा में स्थित सिंहदेव परिवार के स्वामित्व की भूमि को लेकर हाईकोर्ट बिलासपुर में दाखिल जनहित याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सत्तीपारा के शिवसागर तालाब एवं मौलवी बांध के कुल 54.20 एकड़ भूमि में से 33 एकड़ भूमि का लैंड यूज 1996 में बदल दिया गया था। इसे लेकर हाईकोर्ट में तरूनीर समिति ने जनहित याचिका लगाई थी।
डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव के अधिवक्ता संतोष सिंह ने बताया कि शिवसागर तालाब व मौलवी बांध के खसरा क्रमांक 3467, रकबा 52.6 एकड़ व खसरा क्रमांक 3385 रकबा 2.14 एकड़ कुल 54.20 एकड़ भूमि इन्वेंट्री में राजपरिवार के नाम दर्ज है। उक्त 54.20 एकड़ भूमि में से सिर्फ 21 एकड़ भूमि ही जलस्रोत के रूप में उपयोग हो रहा था। शेष 33 एकड़ भूमि का मद परिवर्तन करने के लिए टीएस सिंहदेव ने कलेक्टर सरगुजा को वर्ष 1995 में आवेदन दिया गया था। कलेक्टर सरगुजा द्वारा राजस्व विभाग की टीम गठित कर इसकी जांच कराई गई। कलेक्टर सरगुजा ने 05 नवंबर 1996 के आदेश द्वारा जलक्षेत्र 21 एकड़ को छोड़कर शेष 33.18 एकड़ भूमि का मद परिवर्तित कर दिया गया था।
अधिवक्ता संतोष सिंह ने बताया कि इस आदेश के 20 वर्ष बाद तरूनीर समिति के अध्यक्ष कैलाश मिश्रा द्वारा 08 दिसंबर 2016 व 11 अगस्त 2017 को कलेक्टर सरगुजा के समक्ष शिकायत की गई। समिति के एक पदाधिकारी विशाल राय ने राज्य शासन से 24.10.2016 को शिकायत कर इसकी जांच कराए जाने की मांग की थी। शिकायत में टीएस सिंहदेव व उनके परिवार के सदस्यों द्वारा अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए गलत ढंग से तालाब की भूमि को अपने नाम से दर्ज कराकर क्रय-विक्रय किया जा रहा है। तत्कालीन कलेक्टर भीम सिंह द्वारा इसकी विधिवत तरीके से जांच कराई गई और जांच में पाया गया कि इसमें किसी प्रकार की कोई त्रुटि नहीं है। तालाब का 21 एकड़ यथावत पाया गया। इसका प्रतिवेदन 22.02.2017 को राज्य शासन को भेज दिया गया था।
एनजीटी व सुप्रीम कोर्ट में भी खारिज हुई याचिका
अधिवक्ता संतोष सिंह ने बताया कि उक्त भूमि की जांच रिपोर्ट के पश्चात् भूमि के मद परिवर्तन को लेकर आलोक दुबे ने एनजीटी भोपाल में प्रकरण क्रमांक 06/19 प्रस्तुत किया गया। एनजीटी भोपाल ने उक्त भूमि का व्यपवर्तन विधिवत करना पाए जाने पर प्रकरण 07.03.2019 को खारिज कर दिया था। एनजीटी ने आलोक दुबे के पुनर्विचार याचिका को भी खारिज कर दिया था। आलोक दुबे ने इस आदेश के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 27.08.2021 को खारिज कर दिया था।
2022 में पेश की गई थी जनहित याचिका
तरूनीर समिति के उपाध्यक्ष किशन मधेशिया ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हाईकोर्ट बिलासपुर में जनहित याचिका पेश की थी, जिसमें उन्होंने जलस्रोत की भूमि का लैंड यूज बदले जाने को लेकर चैलेंज किया था। अधिवक्ता संतोष सिंह ने बताया कि तरूनीर समिति ने एनजीटी व सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तथ्यों को छिपाकर याचिका प्रस्तुत किया गया था। हाईकोर्ट बिलासपुर ने कहा कि यह याचिका व्यक्तिगत लाभ के लिए प्रस्तुत किया गया है, जनहित का नहीं है। इस कारण याचिका को दिनांक 08.09.23 को निरस्त कर दिया है।
मानहानि का केस करने पर करेंगे विचार
अधिवक्ता संतोष सिंह एवं कांग्रेस जिलाध्यक्ष राकेश गुप्ता ने कहा कि शिकायतकर्ता कैलाश मिश्रा एवं आलोक दुबे द्वारा 10 वर्षों से तालाब की जमीन को पाटने का आरोप लगाकर टीएस सिंहदेव की छवि को धूमिल करने का प्रयास कर रहे थे। सिंहदेव के अंबिकापुर वापस आने के बाद दोनों के खिलाफ मानहानि का केस करने पर विचार किया जाएगा।
शिवसागर तालाब व मौलवी बांध के खसरा क्रमांक 3467, रकबा 52.6 एकड़ व खसरा क्रमांक 3385 रकबा 2.14 एकड़ कुल 54.20 एकड़ भूमि इन्वेंट्री में राजपरिवार के नाम दर्ज है।
1996 में बदला गया था लैंड यूज
तरूनीर समिति ने हाईकोर्ट में दायर याचिका में आरोप लगाया था कि शिवसागर तालाब व मौलवी बांध जो सेटलमेंट रिकार्ड में सार्वजनिक निस्तार के जलस्रोत के मद के रूप में खसरा क्रमांक 3467 रकबा 52 एकड़ दर्ज है। दूसरा खसरा क्रमांक 3385 में 2.14 एकड़ कुल 54.20 एकड़ भूमि जल स्रोत आजादी के बाद राजपरिवार के नाम दर्ज हुई थी। नवंबर 1996 को सरगुजा कलेक्टर ने 21 एकड़ में जलस्रोत को छोड़कर शेष 33.18 भूमि को आवासीय व व्यवसायिक मद में बदल दिया। कलेक्टर द्वारा लैंडयूज बदले के बाद तालाब में निर्माण सामाग्री पाटी गई और भवन व अन्य निर्माण कार्य कराए गए। कोलोनाइजर द्वारा यहां कालोनी का निर्माण कराया गया है। तरूनीर समिति ने जलस्रोत के मद परिवर्तन करने एवं इसे बेचे जाने को लेकर जनहित याचिका लगाई थी।